Nagpur News: मोबाइल नहीं मूवमेंट चाहिए, डिजिटल लत से बचाएं बचपन - मस्तिष्क पर होता गहरा प्रभाव

मोबाइल नहीं मूवमेंट चाहिए, डिजिटल लत से बचाएं बचपन - मस्तिष्क पर होता गहरा प्रभाव
  • बच्चों में हो जाता है चिड़चिड़ापन
  • क्रीन टाइम का माइंड, हेल्थ पर निगेटिव असर
  • मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव होता है

Nagpur News. मोबाइल बच्चों के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है। यह उनके मेंटल और फिजिकल हेल्थ को प्रभावित करने के साथ-साथ सामाजिक विकास पर भी नेगेटिव इफेक्ट डाल रहा है। इस संबंध में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) ने भी हाल ही में बच्चों के स्क्रीन टाइम को लेकर चेतावनी जारी की है। मोबाइल या टैबलेट का उपयोग बच्चों के लिए खतरनाक माना है। मोबाइल एक साधन है, जीवन का केंद्र नहीं। बच्चों को एक ऐसी दुनिया दें, जहां स्क्रीन नहीं, कम्युनिकेशन, इमोशन और कनेक्टिविटी प्रायोरिटी हो।


बच्चों में हो जाता है चिड़चिड़ापन

डॉ. मनीष ठाकरे, मानसोपचार तज्ञ के मुताबिक छोटे बच्चों को ज्यादा मोबाइल या टैबलेट दिखाना उनकी ग्रोथ पर नेगेटिव असर डालता है। शुरुआती दो साल उनके दिमागी और भाषाई विकास के लिए बेहद जरूरी होते हैं, लेकिन स्क्रीन के चलते वे ठीक से बोलना, समझना और कनेक्ट करना नहीं सीख पाते। खासकर खाने के वक्त बच्चे बिना मोबाइल के खाना नहीं खाते और जल्दी चिड़चिड़े हो जाते हैं। पेरेंट्स को चाहिए कि वो खुद भी मोबाइल का यूज़ बच्चों के सामने कम करें, क्योंकि बच्चे उन्हीं की कॉपी करते हैं। स्क्रीन चाहे कोई भी हो, बच्चों से दूर रखना बेहतर है।

कैसे बरतें सावधानी

2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को स्क्रीन से पूरी तरह दूर रखा जाए।

2-5 वर्ष के बच्चों का स्क्रीन टाइम एक घंटे से ज्यादा न हो।

हर एक घंटे की स्क्रीन एक्टिविटी के बाद 15 मिनट का ब्रेक आवश्यक।

बच्चों के लिए सोने से 1 घंटे पहले कोई भी स्क्रीन गतिविधि न हो।

बच्चों को स्क्रीन की बजाय फिज़िकल एक्टिविटी की ओर मोटिवेट किया जाए।


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क्या हो सकता है समाधान

स्क्रीन टाइम मॉनिटरिंग ऐप्स का यूज करें।

बच्चों के साथ बैठकर साथ में स्क्रीन देखें, जैसे कि एजुकेशनल विडियोज।

स्कूलों और समुदायों में स्क्रीन-अवेयरनेस प्रोग्राम्स चलाए जाएं।

पार्कों और खेल के मैदानों को बढ़ावा दिया जाए।

माता-पिता को भी स्क्रीन टाइम कम करना होगा, ताकि वे खुद उदाहरण बन सकें।


मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को दिनभर में एक घंटे से अधिक स्क्रीन के संपर्क में नहीं आना चाहिए। 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को तो बिल्कुल भी स्क्रीन के सामने नहीं बैठना चाहिए। जब बच्चे बहुत कम उम्र में मोबाइल फोन या टैबलेट का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, तो उनका माइंड तेजी से बदलते दृश्यों और रंगों का आदी हो जाता है। इसका असर उनकी एकाग्रता क्षमता, सीखने की गति और प्रोडक्टिविटी पर पड़ता है। ज्यादा समय तक स्क्रीन देखने से बच्चों में मोटापा, नींद की कमी, दृष्टि समस्याएं और कम शारीरिक गतिविधि जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं।

पेरेंट्स और प्रायोरिटी

डब्ल्यूएचओ की सिफारिशों में बताया गया है कि स्क्रीन टाइम को कंट्रोल करने की ज़िम्मेदारी मुख्यतः माता-पिता की होती है। उन्हें बच्चों के लिए एक नियमित दिनचर्या, खेल का समय, पढ़ाई का समय और मोबाइल का सीमित उपयोग निर्धारित करना चाहिए। स्क्रीन के ऑप्शन के रूप में कहानी सुनाना, फैमिली के साथ टाइम स्पेंड करना, ड्रॉइंग, खेल खेलना जैसी एक्टिविटी शामिल करनी चाहिए। बच्चों का मोबाइल पर अधिक समय बिताना उनकी सामाजिक क्षमता को भी अफेक्ट कर रहा है। जब बच्चे वर्चुअल दुनिया में खो जाते हैं, तो वे वास्तविक दुनिया में कम्युनिकेट करना और भावनाएं व्यक्त करना भूलने लगते हैं। यह सही है कि आज के डिजिटल युग में बच्चों को टेक्नोलॉजी से पूरी तरह दूर रखना पॉसिबल नहीं है, लेकिन जरूरी यह है कि बैलेंस बनाया जाए। स्मार्टफोन को स्मार्ट तरीके से इस्तेमाल करना और उसकी लत से बच्चों को बचाना हर पैरेंट्स की प्रायोरिटी होनी चाहिए।



Created On :   13 July 2025 6:56 PM IST

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