जयंती विशेष: शिवाजी महाराज ने औरंगजेब को कुछ ऐसे दी थी टक्कर, यहां पढ़ें पूरा परिचय

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जयंती विशेष: शिवाजी महाराज ने औरंगजेब को कुछ ऐसे दी थी टक्कर, यहां पढ़ें पूरा परिचय
जयंती विशेष: शिवाजी महाराज ने औरंगजेब को कुछ ऐसे दी थी टक्कर, यहां पढ़ें पूरा परिचय
हाईलाइट
  • बीमारी के चलते 1680 में हुआ था स्वर्गवास
  • राज्याभिषेक का ब्राह्मणों ने किया था विरोध
  • शिवाजी महाराज का बंदीगृह में हुआ था जन्म

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आज सारा देश धूमधाम से छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती मना रहा है। मुगल सेना से लोहा लेने वाले शिवाजी महाराज का जन्म 1630 में आज ही के दिन हुआ था। उन्होंने पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी। शिवाजी का जन्म शाहजी भोंसला की धर्मपत्नी जीजाबाई के गर्भ से शिवनेर नामक दुर्ग में हुआ था। उनके जन्म के दौरान मां जीजाबाई शिवनेर दुर्ग के बंदीगृह में कैद थीं। इस दौरान वह शिवाई देवी की उपासना करती थीं और वीर पुत्र की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती थीं। इसी के चलते महाराज का नाम शिवाजी रखा गया।

बाल्यावस्था
शिवाजी के जन्म के बाद उनके पिता शाहजी ने जीजाबाई का त्याग कर दिया था। इस कारण शिवाजी का बचपन काफी उपेक्षित रहा और बहुत दिनों तक पिता के संरक्षण से वंचित भी रहा। उनका लालन - पालन उनके स्थानीय संरक्षक दादाजी कोंडदेव, जीजाबाई तथा समर्थ गुरु रामदास की देखरेख में हुआ। वह बचपन से ही बहुत होनहार, वैभवशाली बालक होने के अलावा शूरवीर योद्धा भी थे। अपनी बाल्यावस्था में ही उन्होंने इसका एक नमूना दिखा दिया था। उस समय देश में मुगलों का शासन था।

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रोचक किस्सा
महाराज शिवाजी की बाल्यावस्था की एक कहानी बहुत प्रचलित है। इतिहासकार बताते हैं कि जब उनके पिता शाहजी बीजापुर दरबार में थे, तब एक दिन मुरारपंत ने शिवराज से कहा कि चलो आज तुम्हें दरबार में ले चलूं और तुम बादशाह को सलाम करना। जवाब में उन्होंने क्रोध में कहा कि हम हिंदू हैं और बादशाह यवन हैं, जो महानीच होते हैं। हम गो ब्राह्मण और वो हमारे दुश्मन। हमारा उनसे मेल कैसा? मैं ऐसे मनुष्य को देखना भी नहीं चाहता, जो हमारे धर्म का शत्रु है। ऐसे को छूना भी पाप है। मैं न तो ऐसे मनुष्य को अपना बादशाह मान सकता हूं और न उसे सलाम करना चाहता हूं। सलाम करना तो दूर, मन में आता है कि मैं ऐसे बादशाह का गला ही काट दूं।

महाराज और औरंगजेब
मुगलों से शिवाजी की पहली लड़ाई 1656-57 में हुई। यह युद्ध उनके नाम रहा। इसके बाद शिवाजी का नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज होता रहा। इस बीच जब अपने पिता शाहजहां को कैद करके औरंगजेब मुगल सम्राट बना, तब तक सारे दक्षिण भारत में शिवाजी अपना आधिपत्य जमा चुके थें। औरंगजेब के कहने पर उसके सूबेदार शाइस्ता खां ने सूपन, चापन और मावल में जमकर लूटपाट की। इसकी बात जब शिवाजी को मालूम हुई, तो उन्होंने शाइस्ता खां पर हमला किया। हालांकि वह बचकर निकलने में सफल हो गया, लेकिन उसे अपने हाथ की 4 उंगली गंवानी पड़ी।

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इसके बाद औरंगजेब ने संधी करने के लिए शिवाजी को आगरा बुलाया। सुरक्षा का पूर्ण आश्वासन मिलने के बाद शिवाजी, औरंगजेब से मिलने के लिए तैयार हुए और 9 मई, 1666 को 4,000 मराठा सैनिकों के साथ आगरा स्थित मुगल दरबार पहुंचे। लेकिन औरंबजेब द्वारा उचित सम्मान न मिलने पर भरे दरबार में शिवाजी ने अपना रोष दिखाते हुए औरंगजेब को विश्वासघात करार दिया। इसके बदले औरंगजेब ने उन्हें और उनके बेटे शंभाजी को जयपुर भवन में कैद करवा दिया। हालांकि शिवाजी चतुराई से 13 अगस्त, 1666 को फलों की टोकरी में छिपकर वहां से निकलने में सफल रहे।

राज्याभिषेक
इसके बाद शिवाजी ने 1674 तक उन सभी प्रदेशों पर अधिकार जमा लिया था, जहां मुगलों का राज था। फिर उन्होंने पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद अपना राज्याभिषेक करना चाहा, लेकिन ब्राह्मणों ने इसका विरोध किया और क्षत्रिय होने का प्रमाण मांगा। जब ब्राह्मणों को उनके क्षत्रिय होने के पुख्ता प्रमाण मिले, तब रायगढ़ में उनका राजतिलक किया गया। उनके राज्याभिषेक के अवसर पर गोब्राह्मण रक्षक शिवाजी ने अपने वजन के बराबर तौल कर सोना ब्राह्मणों को तुलादान किया।

मृत्यु
1680 के मार्च महीने में शिवाजी महाराज को घुटनों पर दर्द उठा। इसके साथ उन्हें पैरों में सूजन होने लगी और तेज बुखार भी रहने लगा। इसी के चलते वे 7 दिन में ही 3 अप्रैल, 1680 को स्वर्ग सिधार गए। वैसे तो शिवाजी पढ़े - लिखे नहीं थे, लेकिन जैसी शासन व्यवस्था उन्होंने बना रखी थी, वैसी तत्कालीन भारतव्यापी मुगल साम्राज्य की भी नहीं थी।

Created On :   19 Feb 2020 7:32 AM GMT

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