आचार्य विद्यानंदजी महाराज का शताब्दी समारोह: पीएम नरेंद्र मोदी कार्यक्रम में हुए शामिल, कहा - भारत ने दुनिया को हिंसा से अहिंसा की शक्ति का बोध कराया

- आचार्य विद्यानंदजी महाराज का शताब्दी समारोह
- दुनिया को भारत ने पढ़ाय हिंसा से अहिंसा का पाठ
- भारत के संस्कार है कि संतों के द्वारा दिए गए उपाधि को प्रसाद समझकर स्वीकार करे
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार (आज) को नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में आचार्य विद्यानंदजी महाराज की शताब्दी समारोह में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने कहा कि दुनियाभर में जब हजारों सालों तक हिंसा होती थी तो उसको शांत करने के लिए हिंसा का प्रयोग किया जाता था। लेकिन भारत ने दुनिया को वह शक्तियां दी है। जिसकी वजह से आज के दौर में हिंसा को अहिंसा के जरिए सुलझया जाता है। वहीं कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी को जैन समुदाया की तरफ से धर्म चक्रवर्ती की उपाधि से सम्मानित किया।
क्या बोले अपने संबोधन में पीएम मोदी?
पीएम मोदी अपने शुरूआती संबोधन में बोले कि मुझे इस कार्यक्रम में आने का मौका दिया। जिसके कारण में आप सभी का आभार व्यक्त करता करता हूं। इसके बाद उन्होंने कहा कि हम सब साथ मिलकर भारत की अध्यात्म परंपरा के अवसर के साक्षी बन रहे हैं। पूज्य आचार्य विद्यानंद जी मुनिराज की जन्म शताब्दी और उनकी प्रेरणाओं से प्रेरित इस कार्यक्रम से नए वातारण की शुरूआत कर रहे हैं।
पीएम ने कहा कि उनके कार्यक्रम के दौरान आप मेरा धर्म चक्रवर्ती से सम्मान कर रहे हैं। लेकिन मैं इस योग्य नहीं समझता कि मुझे लेना चाहिए। फिर भी भारत का संस्कार करता है कि संतों के द्वारा दिए गए उपाधि को प्रसाद समझकर स्वीकार लेना चाहिए।
उनके विचार भारत की चेतना से जुड़ा
प्रधानमंत्री अपने संबोधन में आगे कहते है कि आचार्य विद्यानंद जी महाराज अपने जीवन काल में कहते थे कि जीवन तभी जीवन हैं जब खुद में ही सेवामय हो जाए। उनके विचार जैन धर्म के दर्शन की मूल भावना से जुड़ा हुआ है। वहीं उनके ये विचार भारत की चेतना के साथ जुड़ा हुआ है। दुनियाभर में जब हजारों सालों तक हिंसा होती ती तो उसका निवारण भी हिंसा ही होती थी। लेकिन उस समय जब भारत ने दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाया। जिससे दुनिया को शक्ति का बोध हुआ। हमने हमेशा भारत की सेवा और उनकी भावनाओं को सर्वोपरि रखते है। जिसके कारण हमारा संकल्प है कि सब साथ चले और सभी आगे बढ़ें।
पाण्डुलिपियों को digitize करने की मुहिम
उन्होंने भाषा को लेकर कहा कि ''प्राकृत'' भारत की सबसे पुरानी भाषा है जो भगवान महावीर के उपदेशों की भाषा रही है। लेकिन बदलती संस्कृति के कारण यह भाषा विलुप्त होने लगी है। हमारी सरकार इस भाषा को ''शास्त्रीय भाषा'' का दर्ज दिया है और हम प्राचीन भाषा पाण्डुलिपियों को digitize करने के लिए एक मुहिम चला रहा हैं। बता दें कि आज के दिन यानी 28 जून 1987 में आचार्य विद्यानंद जी मुनिराज को आचार्य पद की उपाधि मिली थी। जिसके कारण जैन समुदाय यह कार्यक्रम कर रहा है।
Created On :   28 Jun 2025 3:15 PM IST