Amravati News: अमरावती जिले में सैकड़ों बच्चे शिक्षा से वंचित सरकारी रजिस्टर में केवल 22 दर्ज

अमरावती जिले में सैकड़ों बच्चे शिक्षा से वंचित सरकारी रजिस्टर में केवल 22 दर्ज
  • शालाबाह्य बच्चों के सर्वे को लेकर उठ रहे सवाल
  • कचरा बीनते या भीख मांगते नजर आते हैं सैकड़ों बच्चे

Amravati News सरकारी कागजों में भले ही जिले में महज 22 शालाबाह्य (स्कूल नहीं जाने वाले) बच्चे दर्ज हों, लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। अमरावती शहर की सड़कों पर, ईंट भट्टों पर, कचरा बीनते या भीख मांगते नजर आने वाले सैकड़ों बच्चे इस तथाकथित "जीरो ड्रॉपआउट" मिशन की पोल खोलते हैं।

शहर की भीड़भाड़ और ग्रामीण अंचलों की गलियों में रोजाना ऐसे कई मासूम दिखते हैं जिन्होंने शायद कभी स्कूल का दरवाजा भी नहीं देखा। इसके बावजूद शिक्षा विभाग का दावा है कि पूरे जिले में सिर्फ 22 बच्चे स्कूल से बाहर हैं, जिनमें से अमरावती शहर में महज 11! यह आंकड़ा सवालों की झड़ी खड़ी कर रहा है कि क्या शिक्षा विभाग की सर्वे प्रक्रिया सिर्फ औपचारिकता बनकर रह गई है?

सर्वे का दस्तावेजी दावा बनाम जमीनी सच्चाई : जिला सर्व शिक्षा अभियान कार्यालय के मुताबिक, सभी 14 तहसीलों में ग्रामस्तर पर सर्वे कर यह रिपोर्ट तैयार की गई। इसके लिए शिक्षक, केंद्र प्रमुख, मुख्याध्यापक आदि की मदद से स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चों की पहचान की गई और उन्हें स्कूलों में दाखिल करने की औपचारिकता भी पूर्ण की गई।

यह भी बताया गया कि जो बच्चे दूसरे जिलों या राज्यों में पलायन कर चुके हैं, उनके पालकों से शपथपत्र भरवाए गए हैं कि वे अपने बच्चों को स्कूल में अवश्य दाखिल कराएंगे, लेकिन यहीं पर असली विडंबना सामने आती है। विभाग यह स्वीकार करता है कि जिले में ऐसे सैकड़ों बच्चे हैं जो स्कूल नहीं जाते, लेकिन रिपोर्ट में सिर्फ 22 शालाबाह्य बच्चे दर्शाए गए हैं।

बच्चों का भविष्य दस्तावेजों की भेंट चढ़ा : जानकारों के अनुसार, शिक्षा विभाग की यह नीति सिर्फ "अच्छे आंकड़े" दिखाने के लिए बनाई गई योजना प्रतीत होती है। जबकि वास्तविकता यह है कि आज भी जिले के सैकड़ों बच्चे शिक्षा से वंचित हैं, और इनमें से अधिकांश गरीबी, बालश्रम और सामाजिक उपेक्षा की मार झेल रहे हैं।

पालकों की भी अहम भूमिका : जिले में जिन बच्चों की शिनाख्त शालाबाह्य के रूप में हुई, उन्हें मनपा, नप या जिला परिषद की स्कूलों में दाखिल किया गया है। लेकिन कई बार पालक एक-दो दिन स्कूल भेजने के बाद बच्चों को फिर से काम पर भेज देते हैं। यह बच्चों के शैक्षणिक भविष्य के लिए घातक है। सरकार द्वारा नि:शुल्क गणवेश, मध्यान्ह भोजन और अन्य सुविधाएं भी दी जा रही हैं, फिर भी यदि बच्चा स्कूल नहीं जाता तो इसके लिए पालकों को भी जवाबदेह ठहराना जरूरी है। - सतीश मुगल, जिप शिक्षणाधिकारी


Created On :   8 Aug 2025 2:30 PM IST

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