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Jabalpur News: कागजों पर फिटनेस तो बाकी सब कुछ फिट, हादसों के बावजूद सबक नहीं, धड़ल्ले से दौड़ रहीं खटारा बसें

- बसों की फिटनेस परमिट की जांच शुरू, चौकन्ना हुआ परिवहन विभाग
- जबलपुर में भी सड़कों पर ऐसे हादसों में बेगुनाहों की जानें गई हैं।
- जानकारों का कहना है कि इन रूटों पर चलने वाली बसों के परमिट, पीयूसी और फिटनेस की कभी जांच नहीं की जाती है।
Jabalpur News: भोपाल के बाणगंगा चौराहे पर स्कूल बस हादसे के बाद अब पूरे प्रदेश की बसों की जांच के लिए नई व्यवस्था बनाने की तैयारी शुरू की है। नया कंट्रोल रूम बनाया जा रहा है। जहां से पूरे प्रदेश की बसों की फिटनेस, परमिट, पीयूसी और व्हीकल लोकेशन ट्रैकिंग डिवाइस की निगरानी होगी। न तो हादसा नए तरह का है और न ही घटना के बाद दिखाई जाने वाली सर्तकता और फिक्रमंदी।
जबलपुर में भी सड़कों पर ऐसे हादसों में बेगुनाहों की जानें गई हैं। यहां सड़कों पर भी लगभग 400 यात्री बसें दिन-रात दौड़ रही हैं। परिवहन विभाग के फिटनेस और परमिट के जुमले कोई एक-दो दिन में गायब हाे जाएंगे। जब तक कि कोई फिर नया हादसा किसी मासूम की सांसें न छीन ले। परिवहन कार्यालय के कागजों पर बसों की फिटनेस एकदम "फिट"नजर आएगी लेकिन सड़क पर होने वाले हादसे खुद यह हकीकत बयां कर देते हैं कि परिवहन कार्यालय में परमिट और फिटनेस का गोरखधंधा कैसे चलता है।
इन रूटों पर चल रहीं खटारा बसें
जबलपुर जिले में 8 रूटों पर धड़ल्ले से खटारा बसें चल रही हैं। इन रूटों पर ऐसी बसें चलाई जा रही हैं, जिनमें ठीक से दरवाजे तक नहीं हैं और सुरक्षा मानकों की सरासर अनदेखी की जा रही है। जानकारों का कहना है कि इन रूटों पर चलने वाली बसों के परमिट, पीयूसी और फिटनेस की कभी जांच नहीं की जाती है।
सिस्टम सावधानी का, सेटिंग के आगे सब फेल
फिटनेस
भारी वाहनों जैसे बस और ट्रक की फिटनेस जांच में वाहन के इंजन, ब्रेक, स्टीयरिंग, लाइट, टायर की जांच की जाती है। साथ ही यह भी देखा जाता है कि वाहन सड़क पर सुरक्षित रूप से चलने लायक है या नहीं।
हकीकत- जबलपुर और आसपास के क्षेत्रों में लगभग 400 बसों का संचालन हो रहा है। इनमें से ग्रामीण क्षेत्रों में चल रही ज्यादातर बसें नियमों को ताक पर रखकर संचालित की जा रही हैं।
कारण- फिटनेस की यह व्यवस्था निजी हाथों में सौंप दी गई है।
परमिट
किसी भी वाहन को सार्वजनिक सड़कों पर चलाने के लिए वैध परमिट का होना आवश्यक है। परमिट की वैधता अवधि वाहन के प्रकार, उपयोग के आधार पर भिन्न होती है।
हकीकत- परमिट की अवधि एक, तीन और पांच साल होती है। लेकिन कई वाहन समय सीमा के बाद भी दौड़ती रहती है।
कारण- वाहनों की परमिट में बड़ा घालमेल होता है। रुटीन चैकिंग नहीं होती। वसूली के बाद विभाग की तरफ से पूरी छूट रहती है।
पीयूसी
पॉल्यूशन कंट्रोल सर्टिफिकेट यानी पीयूसी एक ऐसा दस्तावेज है, जो प्रमाणित करता है कि वाहन का उत्सर्जन केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित स्वीकार्य सीमा के भीतर है।
हकीकत- उम्रदराज और खराब वाहन निर्धारित सीमा से अधिक धुआं छोड़ते नजर आते हैं। वायु प्रदूषण होता है। पुराने वालों के खिलाफ कार्यवाही भी नहीं होती।
कारण- वायु प्रदूषण रोकने के लिए पीयूसी की अनिवार्यता लागू की गई है, लेकिन जांच प्राइवेट एजेन्ट के हवाले है। पैसा लेकर वाहनों की जांच के बगैर सर्टिफिकेट जारी करना आम बात है।
परिवहन विभाग ने शुरू की जांच
भोपाल हादसे के बाद मुख्यमंत्री के निर्देश पर वाहनाें की फिटनेस और दस्तावेजों की जांच के लिए प्रदेशव्यापी अभियान शुरू कर दिया गया है। क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय द्वारा वाहनों के आवश्यक दस्तावेज जैसे फिटनेस प्रमाण पत्र, बीमा, पंजीयन, परमिट और पीयूसी की जांच की जा रही है। क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय की टीम ने बिना फिटनेस की 5, बिना परमिट संचालित 1 और सुरक्षा उपकरणों की कमी के मामले में 13 बसों के चालान करते हुए कुल 22 बसों पर चालानी कार्रवाई करते हुए 45684 रुपए सम्मन शुल्क वसूल किया है।
बढ़ रहे सड़क हादसे
शहर में तकरीबन चार सैकड़ा बसों का संचालन प्रतिदिन आईएसबीटी से हो रहा है। 22 बसें सेवा सूत्र में प्राइवेट अनुबंध से संचालित होती हैं। इसके अलावा 50 बसें जेसीटीएसएल द्वारा संचालित की जा रही हैं। परिवहन विभाग द्वारा बसों की फिटनेस और परमिट की जांच समय पर नहीं की जा रही है जिसके चलते ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों पर खटारा बसें न केवल फर्राटे से दौड़ रही हैं, बल्कि इनके परमिटों का भी पता नहीं है। जांच न होने के कारण अनफिट बसें दुर्घटनाओं का कारण बन रही हैं।
जिले में संचालित भारी वाहनों के दस्तावेजों, परमिट और फिटनेस की जांच शुरू की गई है। नियम विरुद्ध संचालित बसों के खिलाफ चालानी कार्रवाई की जा रही है।
-जितेन्द्र रघुवंशी, आरटीओ जबलपुर
Created On :   21 May 2025 7:21 PM IST