उपराष्ट्रपति चुनाव 2025: रिटायर जस्टिसों के एक ग्रुप ने विपक्ष के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार रेड्डी पर केंद्रीय गृह मंत्री शाह के बयान को बताया दुर्भाग्यपूर्ण

- जुलाई 2011 में सलवा जुडूम को भंग करने का आदेश
- सलवा जुडूम केस में टॉप कोर्ट के फैसले को लेकर शाह ने साधा था निशाना
- 18 रिटायर जस्टिसों के समूह में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जज शामिल
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। रिटायर जस्टिसों के एक ग्रुप ने सलवा जुडूम मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। उन्होंने कहा कि इससे बचना ही समझदारी होगी। 18 रिटायर जस्टिसों के समूह ने यह भी कहा कि एक उच्च राजनीतिक पदाधिकारी की ओर से देश के सर्वोच्च अदालत के फैसले की पूर्वाग्रहपूर्ण गलत व्याख्या से न्यायाधीशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। आपको बता दें शाह ने रेड्डी पर नक्सलवाद का समर्थन करने का आरोप लगाया था। उन्होंने दावा किया था कि सलवा जुडूम फैसले के बिना वामपंथी उग्रवाद 2020 तक खत्म हो गया होता। सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के समूह में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायाधीश भी शामिल है।
रेड्डी शीर्ष कोर्ट में जस्टिस निज्जर के साथ उस समय बेंच का हिस्सा थे, जिसने जुलाई 2011 में सलवा जुडूम को भंग करने का आदेश दिया था। बेंच ने कहा था कि माओवादी विद्रोहियों के खिलाफ लड़ाई में आदिवासी युवाओं को विशेष पुलिस अधिकारी के रूप में इस्तेमाल करना गैरकानूनी और असंवैधानिक है।
आपको बता दें शीर्ष कोर्ट के 7 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के अलावा हाईकोर्ट के तीन पूर्व मुख्य न्यायाधीशों गोविंद माथुर, एस. मुरलीधर और संजीव बनर्जी ने भी बयान पर हस्ताक्षर किए। पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में उच्च न्यायालयों के पूर्व न्यायाधीश अंजना प्रकाश, सी. प्रवीण कुमार, ए. गोपाल रेड्डी, जी. रघुराम, के. कन्नन, के. चंद्रू, बी. चंद्रकुमार और कैलाश गंभीर शामिल हैं। प्रोफेसर मोहन गोपाल और वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने भी बयान पर हस्ताक्षर किए हैं।
18 पूर्व न्यायाधीशों ने अपने हस्ताक्षरित बयान में कहा है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का सलवा जुडूम मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सार्वजनिक रूप से गलत व्याख्या करना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह फैसला कहीं भी, न तो स्पष्ट रूप से और न ही इसके पाठ के किसी भी निहितार्थ के माध्यम से, नक्सलवाद या उसकी विचारधारा का समर्थन करता है। इस बयान पर हस्ताक्षर करने वाले टॉप कोर्ट के रिटायर जस्टिस एके पटनायक, अभय ओका, गोपाल गौड़ा, विक्रमजीत सेन, कुरियन जोसेफ, मदन बी. लोकुर और जे. चेलमेश्वर हैं।
सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने कहा भारत के उपराष्ट्रपति पद के लिए प्रचार अभियान वैचारिक हो सकता है, लेकिन इसे शालीनता और गरिमा के साथ चलाया जा सकता है। किसी भी उम्मीदवार की तथाकथित विचारधारा की आलोचना से बचना चाहिए। किसी उच्च राजनीतिक पदाधिकारी की ओर से टॉप कोर्ट के फैसले की पूर्वाग्रही गलत व्याख्या का सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को हिला सकता है। रिटायर न्यायाधीशों ने कहा कि भारत के उपराष्ट्रपति के पद के सम्मान में नाम-निंदा से बचना ही समझदारी होगी।
आपको बता दें बीते कुछ दिन पहले शुक्रवार को केरल में बोलते हुए केंद्रीय गृहमंत्री शाह ने कहा था सुदर्शन रेड्डी वह व्यक्ति हैं, जिन्होंने नक्सलवाद को बढ़ावा दिया। उन्होंने सलवा जुडूम का फैसला सुनाया। अगर सलवा जुडूम का फैसला नहीं सुनाया गया होता, तो नक्सली आतंकवाद 2020 तक समाप्त हो गया होता। वह वह व्यक्ति हैं, जो सलवा जुडूम का फैसला देने वाली विचारधारा से प्रेरित थे। शाह के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए उपचुनाव के उम्मीदवार रेड्डी ने कहा था कि वह गृह मंत्री के साथ किसी भी मुद्दे पर बहस नहीं करना चाहते। रेड्डी ने सिर्फ इतना कहा कि फैसला उनका नहीं, बल्कि टॉप कोर्ट का है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर शाह ने पूरा फैसला पढ़ा होता, तो वे ऐसी टिप्पणी नहीं करते।
Created On :   25 Aug 2025 2:25 PM IST