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Nagpur News: विश्व पर्यावरण दिवस , धरती की सांसें घुट रही हैं, हम खामोश तमाशा देख रहे

- इंसानों के साथ जीव-जंतुओं को भी निगल रही जहरीली हवा
- विश्व पर्यावरण दिवस पर दैनिक भास्कर की विशेष प्रस्तुति
Nagpur News "कभी यहां जर्रे-जर्रे में, महकती थी संतरे की खुशबू अब उस महक पर, धूल-धुएं का गुबार बस गया है। नाग नदी अब बहती है, नाला बनकर सहमी-सी उसके हर मोड़ से हमने, जहर का नाता जोड़ दिया है।'
यह पंक्तियां बताती हैं कि इस फलते-फूलते शहर में बेचैनियां कम नहीं हैं। संतरे की खुशबू से महकते शहर को प्रदूषण के गुबार ने ढंक लिया है। इंसानों के साथ हर जीव-जंतु पर जहरीली हवा का असर है। हमने प्रकृति से जितना लिया, उसका एक हिस्सा भी लौटा नहीं पाए हैं। हरी-भरी वसुंधरा, मिट्टी की महक, कलकल बहता साफ पानी, नीला आसमान अब कहां है? आने वाली पीढ़ियां शुद्ध हवा के लिए तरस जाएंगी। कोविड ने ऑक्सीजन की महत्ता बता दी। फिर भी हम विश्व पर्यावरण दिवस की औपचारिकता निभाते हैं, जिम्मेदारी नहीं। गैरजिम्मेदारी हमारी दुश्मन बन चुकी है।
जितना विकास, उतना ही खतरा : नागपुर तेजी से विकसित होते शहर की गिनती में आता है, लेकिन उतना ही बड़ा खतरा सामने है। वायु, जल, हरियाली, कचरा प्रबंधन, प्रदूषण, जैव विविधता की स्थिति भयावह है। निर्माण कार्य का प्रदूषण, कटते पेड़, सिमटते जंगल, शहरों में समाते खेत-खलिहान के जरिये हम आपदा की कहानी लिख रहे हैं।
चिंताजनक स्थिति : पेड़ कटे, कम हुआ हरित क्षेत्र : नागपुर का एयर क्वालिटी इंडेक्स औसत 150 से ऊपर है। यह मध्यम से खराब श्रेणी में आता है। प्रदूषण का मुख्य कारण पीएम 2.5, पीएम 10 और वाहनों का उत्सर्जन है। पानी की गुणवत्ता रिपोर्ट देखें तो पानी के 12 फीसदी नमूनों में बैक्टेरिया हैं। पेड़ों की कटाई ने हरित क्षेत्र कम किया। अब 27 फीसदी के आसपास हरित क्षेत्र बचे हैं। दो साल में विविध योजनाओं के लिए 2300 से अधिक पेड़ काटे गए। ऑक्सीजन देने वाले पौधों का रोपण नहीं हो रहा। मनपा ने 5 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य लेकर अब तक 1.50 लाख पौधे लगाने का दावा किया है। हर रोज 1200 टन ठोस कचरा निकलता है। इसमें से 38 फीसदी कचरे का ही घराें में विलगीकरण हो रहा है।
भांडेवाड़ी में 22 लाख मीट्रिक टन से अधिक कचरा पड़ा है : यहां आग से हवा में जहरीला धुआं घुल गया। औद्योगिक क्षेत्र भी प्रदूषण के कारक हैं। एमपीसीबी ने 35 से अधिक यूनिट को रेड कैटेगिरी में रखा है। जमीन और जल प्रदूषण की शिकायतें बढ़ रही हैं। सीओटू और एसओटू की मात्रा बढ़ रही है। पर्यावरणीय नीतियां 50 फीसदी भी सफल नहीं हो पाती। ग्रीन नागपुर मिशन, प्लास्टिक मुक्त बाजार, घर-घर में कंपोस्ट, रेन वॉटर हार्वेस्टिंग आदि योजनाएं चलते-चलते थम जाती हैं।
Created On :   5 Jun 2025 1:51 PM IST